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भटकती आत्मा भाग - 24




भटकती आत्मा भाग –24

प्रातः सात बजे का समय था। रात तो कलेक्टर साहब ने आंखों आंखों में ही बिताया था। अब भी मैगनोलिया की बेहोशी नहीं टूटते देखकर घबड़ा ही गए थे वे। डॉक्टर के चेंबर की ओर जॉनसन को दौड़ा दिया उन्होंने। डॉक्टर कुछ देर के बाद ही आ गया। उसने मैगनोलिया का निरीक्षण किया। सहसा मैग्नोलिया ने अपनी आंखें खोल दीं। वह कुछ देर तक अपलक डॉक्टर की ओर देखती रही,परंतु उन आंखों में कोई भाव नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे वह डॉक्टर के आर पार देख रही हो कहीं शून्य में। 
  कलेक्टर साहब ने कहा -   "माय .... स्वीट..... डॉटर..... मैगनोलिया....."।
मैगनोलिया ने डॉक्टर के चेहरे पर से दृष्टि हटाकर अपने पिता की ओर देखा और विचित्र सी आवाज में बोली -   
  "पापा मेरा माइकल मर गया"। उन आंखों में अभी भी कोई भाव,कोई दु:ख नहीं था,बिल्कुल भावना रिक्त थीं वे आंखें ! शायद उसे यह भी एहसास नहीं था कि वह देख रही है ! शायद उसे यह भी एहसास नहीं था कि उसने अपने पिता से कुछ कहा है !
  घोर आघात में मन्युष्य के आंसू भी सूख जाते हैं और सोचने समझने की शक्ति जाती रहती है, इस समय वह उसी स्थिति में थी।
  डॉक्टर ने तुरंत एक इंजेक्शन तैयार किया और मैगनोलिया की बाँह में लगाते हुए कहा -  
  "आप गिनती तो जानती होंगी"?
  "गिनती"?- निकला मैगनोलिया के मुंह से।
  "जी हां,जरा गिनिये"।
   "मगर माइकल मर ......." 
वाक्य पूरा करने से पहले ही उसकी आंखें बंद होती चली गईं। आवाज डूबती चली गई। कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद सो चुकी थी। डॉक्टर ने एक गहरी सांस लेकर सिरिंज ट्रे में रखते हुए कहा -
     "माइकल से इनको शायद बहुत प्रेम था"।
  कलेक्टर साहब कुछ नहीं बोले। डॉक्टर ने कहा -   "दिमाग तो ठीक है। शरीर में चोट की गहरी पीड़ा होगी,परन्तु लगता है कोई तीव्र मानसिक आघात लगा है खाई में गिरने के पूर्व,जिसका असर अभी तक है l इसलिए इनको अभी छह-सात दिन सुलाये रखना होगा l ऐसा नहीं किया तो इस सदमे से कुछ भी हो सकता है l यह पागल भी हो सकती हैं। दिमाग की नस भी फट सकती है,हार्ट फेल भी हो सकता है। जब आदमी गहरी नींद में होता है,तब उसका अवचेतन मस्तिष्क काम करता रहता है,जो शरीर को बड़े से बड़ा सदमा झेलने के लिए तैयार करता रहता है। आप चिंता ना करें,एक हफ्ते बाद यह लगभग नॉर्मल हो जाएंगी। मैं कह नहीं सकता कि इस ट्रेजेडी का इनके जीवन पर क्या असर पड़ेगा,लेकिन एक हफ्ते तक सोने के बाद यह कम से कम मरेंगी नहीं। शरीर का अंदरूनी चोट भी लगभग ठीक हो जाएगा"।
   "थैंक्यू डॉक्टर" - कलेक्टर साहब ने रुआंसा होते हुए कहा l
   "अब आप आज घर जाकर आराम कर सकते हैं" -  डॉक्टर ने मशवरा दिया।
   "नहीं मैं अपनी बच्ची के पास ही रहूंगा"।
  "बेकार है,अब यह कल सुबह से पहले नहीं जागेंगी l सुबह को नर्स इन्हें जागने के बाद थोड़ा बहुत नाश्ता करवाएगी,और इनको फिर नींद का इंजेक्शन दे दिया जाएगा। आप हम पर भरोसा रखिए । नर्स इनकी देखभाल के लिए मौजूद है । जब तक यह स्वयं कुछ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद"
  यह कहकर कलेक्टर साहब ने सोती हुई मैगनोलिया पर एक दृष्टि डाली और मिस्टर जॉनसन के साथ कमरे से बाहर निकल गए।
         
            ×   -   ×   -   ×                            
          
    जानकी का जीवन अब मरुस्थल लग रहा था। उसको देखने से लगता था मानो उसने हंसना सीखा ही नहीं है। मनकू माँझी का छोटा भाई अब घर गृहस्थी संभालने लगा था। उसने एक दिन जानकी से कहा -  "दीदी मैं तुम्हारी शादी धूमधाम से करवाऊंगा,भैया का अधूरा काम मैं पूरा करूंगा। तुम दु:खी क्यों होती हो"?
  जानकी उदास मुस्कुराहट बिखेरती हुई बोली -   "मैं अपनी शादी के लिए दु:खी नहीं हूं,बल्कि मेरा प्यारा भैया छिन गया है,दु:ख तो इस बात का है"।
उदास होता हुआ मनकू का अनुज चुप हो गया। जानकी का पिता भी अब हमेशा  दु:खी रहता था। लगता था दोनों परिवार अब कभी नहीं हँसेगा। यह दु:ख शायद  स्थाई बन जाएगा।
  परंतु सुख दु:ख तो एक नदी के दो पाट हैं। कभी दु:ख आता है जीवन में तो कभी सुख। हर  दु:ख की शाम के बाद सुख  का प्रभात अवश्य होता है। हर दु:ख की रात्रि के बाद सुख का दिवा मुस्कुराता है।
    जानकी के बूढ़े पिता ने गांव के लोगों से लड़का खोजने के लिए कहा था। उसकी सांस शायद अब तक बेटी के हाथ पीले करने के लिए ही चल रहे थे। कई लड़कों का नाम बताया भी गया,परन्तु जानकी शादी के लिए तैयार नहीं हुई। शायद मनकू माँझी का इंतजार था उसे। परन्तु वह क्या जानती थी कि उसके साथ क्या गुजरा। अगर उसका भैया नहीं लौटेगा,तब वह आखिर हार थककर शादी कर ही लेगी। बूढ़े पिता को कब तक उस आशा में रोके रखेगी। अपने पिता का दु:ख भी तो उससे देखा नहीं जाता है,जो घुट-घुट कर जी रहा है। उसको तो अपनी कुंवारी बेटी की चिंता जताये जा रही है,लेकिन बिना भैया के वह अब अपनी शादी करने में कोई रुचि नहीं दिखा रही थी। कितना उमंग था भैया मनकू माँझी को,वह कितना धूमधाम से जानकी की शादी करने की तमन्ना रखता था,परन्तु यह क्या हो गया ? उसका भैया ही नहीं रहा - फूट-फूटकर रोने लगी जानकी।


       -    ×    -    ×    -    ×    -

निस्तब्ध रात्रि अपने यौवन पर थी। चांद आकाश में मुस्कुरा रहा था। शायद चांद और रात्रि में प्रेम का अनूठा खेल हो रहा था। चांदनी वसुधा के आंचल में चांदी सा चमक रही थी। बाहर आँगन में मनकू माँझी सोया था,परन्तु उसकी आंखों में नींद नहीं थी। वह लगातार मैगनोलिया के विषय में सोचे जा रहा था। पता नहीं उसका क्या हुआ होगा,एक बात तो निश्चित थी कि वह जीते जी उस अंग्रेज युवक से शादी नहीं करेगी। फिर क्या मनकू माँझी के बिना जीवित रह लेगी ? पता नहीं,अगर उसको मनकू माँझी की मृत्यु के बारे में झूठी बातों पर विश्वास हो गया,तब तो अनर्थ ही हो जायेगा,वह भी आत्महत्या कर लेगी। फिर तो उसका जीवन अंधकार मय हो जाएगा। नहीं अब वह यहां नहीं रहेगा। कल ही सरदार से कहकर चल पड़ेगा। सरदार ने भी कितने प्यार से उसको "बेटा" कहा था। क्या सरदार के ऋण को वह इस जिंदगी में चुका पाएगा ? कभी नहीं चुका पाएगा  शायद ! मनकू माँझी उठ कर बैठ गया था ।
  सरदार की पुत्री को भी नींद नहीं आ रही थी,वह भी उस अज्ञात युवक के विषय में सोच रही थी। अचानक आंखें मलती हुई उठ बैठी। फिर बिस्तर से उठकर अपने पैर बाहर आँगन की तरफ बढ़ाती चली गई। उसने मनकू माँझी को बैठे हुए पाया। वह निकट जाकर मुस्कुराई, फिर हौले से बोली  -
   "ओह तो इस ओर भी आग लगी है"।
   "कैसी आग,मैं समझा नहीं" -  मनकू माँझी ने कहा।
    "तुम्हारा नाम क्या है" - अपनी पहली बात को दबाती हुई युवती ने पूछा।
   "मेरा नाम मनकू माँझी है,और तुम्हारा"?-  मनकू ने प्रश्न किया।
  "लोग मुझे धन्नो कहते हैं" -  युवती हंसती हुई बोली।
  "तुम पहले क्या प्रश्न की थी"? मनकू माँझी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
    " ओह तो तुम जानना ही चाहते हो,तो बोलो तुम मुझसे कौन सा रिश्ता बनाना पसंद करोगे"?- धन्नो बोली |
   "मेरा जन्म देने वाला पिता कोई और था, लेकिन फिर से जीवन दान देने वाला मेरा पिता सरदार यानी कि तुम्हारे पिता हुए। इसलिए तुम भी मेरी बहन हुई"।
   "ठीक है मैं तुम्हारा यह रिश्ता स्वीकार करती हूं" -  हँसती हुई धन्नो ने कहा। फिर गौर से मनकू माँझी को देखने लगी। कुछ देर के बाद वह बोली - 
  "तुम अभी तक क्यों जाग रहे थे भ - भ - भैया"?
   " मेरी तुम्हारी ही तरह एक और बहन है,उसकी याद आ गई थी"।
   "झूठ बहन की चाहत ऐसी नहीं होती है जिसमें कोई इस तरह आधी रात को जग कर उसे याद करे"।
  "फिर तुम ही बता दो" - मुस्कुराते हुए मनकू ने कहा।
  "अपनी पत्नी को,शायद तुम अपनी पत्नी को याद कर रहे थे"?
  "नहीं पत्नी तो नहीं,मैं अपनी प्रेयसी को याद कर रहा था"।
   " कौन है वह भाग्यवती"?
  " तुम जानकर क्या करोगी"?
  " नहीं बताते तो मत बताओ" -  रूठने का अभिनय करती हुई धन्नो ने कहा। 
  "अच्छा ठीक है मेरी बहना,मैं बताए देता हूं" -   कहता हुआ मनकू माँझी उसको सारी बातें सुनाने लगा।

   क्रमशः




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